Textbook | NCERT |
Board | CBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board |
Class | 6th Class |
Subject | History | Social Science |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | नए प्रश्न नए विचार |
Topic | नए प्रश्न नए विचार CBSE Class 6 History Chapter 6 Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Especially Designed Notes for | CBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam |
नए प्रश्न नए विचार
बुद्ध की कहानी
- बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ थे जिन्हें गौतम के नाम से जाना जाता है।
- उनका जन्म लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था।
- यह वह समय था जब लोगों के जीवन में तेज़ी से परिवर्तन हो रहे थे।
- महाजनपदों के कुछ राजा इस समय बहुत शक्तिशाल हो गए थे।
- हज़ारों सालों के बाद फिर से नगर उभर रहे थे। गाँवों के जीवन में भी बदलाव आ रहा था।
- बहुत-से विचारक इन परिवर्तनों को समझने का प्रयास कर रहे थे।
- वे जीवन सच्चे अर्थ को भी जानना चाह रहे थे।
- बुद्ध क्षत्रिय थे तथा ‘शाक्य’ नामक एक छोटे से गण से संबंधित थे।
- युवावस्था में ही ज्ञान की खोज में उन्होंने घर के सुखों को छोड़ दिया।
- अनेक वर्षों तक वे भ्रमण करते रहे तथा अन्य विचारकों से मिलकर चर्चा करते रहे।
- अंततः ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं ही रास्ता ढूँढ़ने का निश्चय किया।
- इसके लिए उन्होंने बोध गया (बिहार) में एक पीपल के नीचे कई दिनों तक तपस्या की। अंततः उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद
- ज्ञान प्राप्ति के बाद से वे बुद्ध के रूप में जाने गए।
- यहाँ से वे वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ गए, जहाँ उन्होंने पहली बार उपदेश दिया।
- कुशीनारा में मृत्यु से पहले का शेष जीवन उन्होंने पैदल ही एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करने और लोगों को शिक्षा देने में व्यतीत किया ।
बुद्ध का सिद्धांत
- बुद्ध ने शिक्षा दी कि यह जीवन कष्टों और दुखों से भरा हुआ है और ऐसा हमारी इच्छा और लालसाओं (जो हमेशा पूरी नहीं हो सकतीं ) के कारण होता है।
- कभी-कभी हम जो चाहते हैं वह प्राप्त कर लेने के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं एवं और अधिक ( अथवा अन्य) वस्तुओं को पाने की इच्छा करने लगते हैं।
- बुद्ध ने इस लिप्सा को तञ्हा (तृष्णा) कहा है। बुद्ध ने शिक्षा दी कि आत्मसंयम अपनाकर हम ऐसी लालसा से मुक्ति पा सकते हैं।
- उन्होंने लोगों को दयालु होने तथा मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों के जीवन का भी आदर करने की शिक्षा दी।
- वे मानते थे कि हमारे कर्मों के परिणाम, चाहे वे अच्छे या बुरे, हमारे हों वर्तमान जीवन साथ-साथ बाद के जीवन प्रभावित करते हैं।
- बुद्ध अपनी शिक्षा सामान्य लोगों की प्राकृत भाषा में दी। इससे सामान्य लोग भी उनके संदेश को समझ सके ।
- बुद्ध ने कहा कि लोग किसी शिक्षा को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करें कि यह उनका उपदेश है, बल्कि वे उसे अपने विवेक से मापें ।
उपनिषद्
- जिस समय बुद्ध उपदेश दे रहे थे उसी समय या उससे भी थोड़ा पहले दूसरे अन्य चिंतक भी कठिन प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास कर रहे थे।
- उनमें से कुछ मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानना चाहते थे जबकि अन्य यज्ञों की उपयोगिता के बारे में जानने को उत्सुक थे।
- इनमें से अधिकांश चिंतकों का यह मानना था कि इस विश्व में कुछ तो ऐसा है जो कि स्थायी है और जो मृत्यु के बाद भी बचा रहता है।
- उन्होंने इसका वर्णन आत्मा तथा ब्रह्म अथवा सार्वभौम आत्मा के रूप में किया है।
- वे मानते थे कि अंततः आत्मा तथा ब्रह्म एक ही हैं।
- अधिकांश उपनिषद् के विचारक पुरुष थे, विशेषकर: पुरुष ब्राह्मण तथा राजा होते थे।
- कभी-कभी गार्गी जैसी स्त्री – विचारकों का भी उल्लेख मिलता है। विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध गार्गी राजदरबारों में होने वाले वाद-विवाद में भाग लिया करती थीं।
शंकराचार्य
- निर्धन व्यक्ति इस तरह के वाद-विवाद में बहुत कम हिस्सा लेते थे।
- इस तरह का एक प्रसिद्ध अपवाद सत्यकाम जाबाल का है। सत्यकाम जाबाल का नाम उसकी दासी माँ के नाम पर पड़ा ।
- सत्यकाम के मन में सत्य जानने की तीव्र जिज्ञासा उत्पन्न हुई । गौतम नामक एक ब्राह्मण ने उन्हें अपने विद्यार्थी के रूप में स्वीकार किया तथा वह अपने समय के सर्वाधिक प्रसिद्ध विचारकों में से एक बन गए ।
- उपनिषदों के कई विचारों का विकास बाद में प्रसिद्ध विचारक शंकराचार्य के द्वारा किया गया ।
जैन धर्म
- इसी युग में अर्थात् लगभग 2500 वर्ष पूर्व जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थकर वर्धमान महावीर ने भी अपने विचारों का प्रसार किया ।
- वह वज्जि संघ के लिच्छवि कुल के एक क्षत्रिय राजकुमार थे।
- 30 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया और जंगल में रहने लगे।
- बारह वर्ष तक उन्होंने कठिन व एकाकी जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर द्वारा सिखाया गया सिद्धांत
उनकी शिक्षा सरल थी ।
- सत्य जानने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक स्त्री व पुरुष को अपना घर छोड़ देना चाहिए।
- उन्हें अहिंसा के नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए अर्थात् किसी भी जीव को न तो कष्ट देना चाहिए और न ही उसकी हत्या करनी चाहिए।
- महावीर का कहना था, ” सभी जीव जीना चाहते हैं। सभी के लिए जीवन प्रिय है।” महावीर ने अपनी शिक्षा में दी।
महावीर के अनुयायी
- जैन नाम से जाने गए महावीर के अनुयायियों को भोजन के लिए भिक्षा माँगकर सादा जीवन बिताना होता था।
- उन्हें पूरी तरह से ईमानदार होना पड़ता था तथा चोरी न करने की उन्हें सख्त हिदायत थी।
- उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता था।
- पुरुषों को वस्त्रों सहित सब कुछ त्याग देना पड़ता था।
- अधिकांश व्यक्तियों के लिए ऐसे कड़े नियमों का पालन करना बहुत कठिन था।
- फिर भी हज़ारों व्यक्तियों ने इस नई जीवन शैली को जानने और सीखने के लिए अपने घरों को छोड़ दिया।
- कई अपने घरों पर ही रहे और भिक्खु – भिक्खुणी बने लोगों को भोजन प्रदान कर उनकी सहायता करते रहे।
जैन धर्म का समर्थन और जैन धर्म का प्रसार हुआ
- मुख्यत: व्यापारियों ने जैन धर्म का समर्थन किया।
- किसानों के लिए इन नियमों का पालन अत्यंत कठिन था क्योंकि फ़सल की रक्षा के लिए उन्हें कीड़े-मकौड़ों को मारना पड़ता था।
- बाद की सदियों में जैन धर्म, उत्तर भारत के कई हिस्सों के साथ-साथ गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक में भी फैल गया।
- महावीर तथा उनके अनुयायियों की शिक्षाएँ कई शताब्दियों तक मौखिक रूप में ही रहीं ।
- वर्तमान रूप उपलब्ध जैन धर्म की शिक्षाएँ लगभग 1500 वर्ष पूर्व गुजरात में वल्लभी नामक पर लिखी गई थीं ।
संघ
- महावीर तथा बुद्ध दोनों का ही मानना था कि घर का त्याग करने पर ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
- ऐसे लोगों के लिए उन्होंने संघ नामक संगठन बनाया जहाँ घर का त्याग करने वाले लोग एक साथ रह सकें।
- संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाए गए नियम विनयपिटक नामक ग्रंथ में मिलते हैं।
विनयपिटक से हम क्या जानते हैं।
- विनयपिटक से हमें पता चलता है कि संघ में पुरुषों और स्त्रियों के रहने की अलग-अलग व्यवस्था थी।
- सभी व्यक्ति संघ में प्रवेश ले सकते थे।
- हालाँकि संघ में प्रवेश के लिए बच्चों को अपने माता-पिता से, दासों को अपने स्वामी से, राजा के यहाँ काम करने वाले लोगों को राजा से, तथा कर्जदारों को अपने देनदारों से अनुमति लेनी होती थी ।
- एक स्त्री को इसके लिए अपने पति से अनुमति लेनी होती थी।
- संघ में प्रवेश लेने वाले स्त्री-पुरुष बहुत सादा जीवन जीते थे।
- वे अपना अधिकांश समय ध्यान करने में बिताते थे और दिन के एक निश्चित समय में वे शहरों तथा गाँवों में जाकर भिक्षा माँगते थे।
- यही कारण है कि उन्हें भिक्खु तथा भिक्खुणी (साधु- भिखारी के लिए प्राकृत शब्द ) कहा गया।
- वे आम लोगों को शिक्षा देते थे और साथ ही एक-दूसरे की सहायता भी करते थे। किसी तरह की आपसी लड़ाई का निपटारा करने के लिए वे प्रायः बैठकें भी किया करते थे।
- संघ में प्रवेश लेने वालों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, व्यापारी, मज़दूर, नाई, गणिकाएँ तथा दास शामिल थे।
- इनमें से कई लोगों ने बुद्ध की शिक्षाओं के विषय में लिखा तथा कुछ लोगों ने संघ में अपने जीवन के विषय में सुंदर कविताओं की रचना की।
विहार
- जैन तथा बौद्ध भिक्खु पूरे साल एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते हुए उपदेश दिया करते थे।
- केवल वर्षा ऋतु में जब यात्रा करना कठिन हो जाता था तो वे एक स्थान पर ही निवास करते थे।
- ऐसे समय वे अपने अनुयायियों द्वारा उद्यानों में बनवाए गए अस्थायी निवासों में अथवा पहाड़ी क्षेत्रों की प्राकृतिक गुफाओं में रहते थे।
- स्थानीय व्यक्ति भिक्खु – भिक्खुणियों के लिए भोजन, वस्त्र तथा दवाईयाँ लेकर आते थे।
- जिसके बदले ये भिक्खु और भिक्खुणी लोगों को शिक्षा देते थे। आगे आने वाली शताब्दियों में बौद्ध धर्म उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ बाहरी क्षेत्रों में भी फैल गया।
विहार
- जैसे-जैसे समय बीतता गया भिक्खु – भिक्खुणियों ने स्वयं तथा उनके समर्थकों ने अधिक स्थायी शरणस्थलों की आवश्यकता का अनुभव किया।
- तब कई शरणस्थल बनाए गए जिन्हें विहार कहा गया।
- आरंभिक विहार लकड़ी के बनाए गए तथा बाद में इनके निर्माण में ईंटों का प्रयोग होने लगा।
- पश्चिमी भारत में विशेषकर कुछ विहार पहाड़ियों को खोद कर बनाए गए।
- प्रायः किसी धनी व्यापारी, राजा अथवा भू-स्वामी द्वारा दान में दी गई भूमि पर विहार का निर्माण होता था ।